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Rajeshwari Joshi

Abstract

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Rajeshwari Joshi

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फुरसत तो मिली

फुरसत तो मिली

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कोरोना के डर से ही चलो हमें भी, 

जिंदगी में कुछ फुरसत तो मिली। 

सबके साथ वक्त गुजारने की हमे, 

चलो फिर कुछ मोहलत भी मिली । 


सड़कों को कुछ राहत तो है मिली, 

घर की फिर से रौनकें तो है बढ़ी। 

बहुत समय बाद घर एक साथ बैठा है, 

साथ खाने की फुरसत सबको है मिली । 


बच्चों के साथ गपियाते माँ-बाप को, 

बच्चों की जरूरते पता तो चली। 

बेटे से अपने मन की दो बात करके, 

बूढ़ों के चेहरों पर कुछ खुशी तो खिली। 


हँसी जो रूठ गयी थी होठों से सबके

बहुत दिनों बाद है आज खुलकर हँसी । 

एक उम्र बाद फिर परिवार साथ बैठा है, 

मुद्दतों बाद ठहाकों की महफ़िल है सजी । 


आज फिर बड़े दिन बाद है जिंदगी , 

जिंदगी से फिर गले से है मिली। 

आज बहुत दिन बाद ये थकी जिंदगी ,

सुनहरे ख्वाबों जैसी नींदों में मिली। 


इस मुसीबत के समय में अपनों की, 

परिवार की जरूरत पता तो चली। 

सबको साथ देखकर बूढे माँ- बाप की, 

कुछ सांसें जिंदगी की हैं तो बढ़ी। 


बहुत दिनों बाद गाँव लौटे है हम सब, 

दोस्तों से मिलने की हसरत पूरी तो हुई। 

फिर से सब बचपन में जा पहुँचे आज, 

गाँव की सूनी सड़कें फिर से हैं हँसी। 


बहुत घमंड हो गया था इंसान को आज, 

अपनी औकात है क्या आज पता तो चली। 

इंसान खुद को भगवान ही समझ बैठा था, 

उन्हें अपनी गलतियों की सजा है मिली। 


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