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Rajeshwari Joshi

Others

3  

Rajeshwari Joshi

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स्त्री

स्त्री

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स्त्री मात्र एक तन नहीं, 

एक मन भी है। 

जिसकी आँखों में, 

सीपी से समाये, 

मोती से सपने है। 

जिसके मन में हसरतों का, 

समंदर मचलता है। 

जिसमें मछलियों की, 

तरह रंग- बिरंगा सा, 

सपना तैरता है। 

जिसके आँचल में, 

ममता दीप जलता है। 

होंठ हँसते और दिल में, 

दर्द का दरिया बहता है। 

स्त्री मात्र एक तन नहीं, 

एक मन भी है। 



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