सुकून.......
सुकून.......
वो बारिश की पानी, उसमे भीगने का अलग था मजा,
और सर्दी जुखाम से बिस्तर मे पड़े रहेने की सजा
घर मे माँ की दाँठ और पिताजी का सवाल पे सवाल,
मासूम सा नजर और उदासी के चेहरे होती लाल
फिर जब बुखार हुआ करता, माँ की बेचैनी बढ़ती,
पास बैठे प्यार से वो रोती हुई शरपे हात फैराती
पिताजी को और कुछ सवाल करने से भी वो रोकती,
फिर उनको बुखार नापने को भी बार बार कहेती
बिस्तर मे चुप चाप पड़े रहेने की फिर आता मजा,
पर फिर दाँठनेवालो को मिलता है दाँठने की सजा
दोनों होते बड़े परेशान, वो समझना नहीं आसान,
बेचैन होते रहेते वो देखने को चेहरे पे मुस्कान
सचमे ये वही है ना जो बचपन मे हुआ करता था,
सब बेचैनी के साथ साथ तब सुकून भी मिलता था
बरसाती था,पर पानी मे भीगने की मजा अलग था,
दोस्तों के साथ बारिश मे भीगने का अंदाज अलग था
सडक के पानी मे कूदते थे कीचड़ मे भी खेलते थे,
वैसी करते करते हम अपनी स्कुल पहुँचते थे
तब टीचर हमें देख कभी परेशान हुआ करते,
कभी कभी तो घुसे मे वो पिटाई की बरसात करते
उसमे उनकी छुपी हुयी प्यार हमें नहीं दीखता था,
मन ही मन हमें दर्द के साथ बड़ा घुसा भी आता था
कभी मासूम सा आँखों से सावन की धारा तपकता था,
कभी शर्म के मारे वो आँखे सबसे नजर चुराता था
ऐसे कुछ पल युहीं बीत जाता पता तो नहीं चलता,
भीगे हुए बदन के साथ भीगी कपडे भी सुख जाता
सचमे ये वही है ना जो बचपन मे हुआ करता था,
सब बेचैनी के साथ साथ तब सुकून भी मिलता था
तब की बात कुछ और था, कितने मस्ती करते हम,
कंधे मे बस्तानी का बड़ा बोझ नहीं होता ता कभी कम
उसको लेते हुए दोस्तों से मस्ती करते हुए चलना,
और बारिश के पानी मे कागज़ के कस्तीओं को बहाना
और उसको देखते हुए खुशियों का आनंद भी लेना,
फिर वो कस्तियों को डूबते हुए देखते मायूस होना
कभी कभी उसे बचाने की बेकार कोशीशे भी करना,
अपनी नाकामी से मायूस होके भी हार नहीं मानना
फिर जोश जुटा कर एक और कस्ती बनाके बहाना,
अपनी चंचल मन को कभी फिर समझ नहीं पाना
ये तो सब उस पल की कुछ अलगसी बात होता था,
उसमे भी कभी हमें अपने हार तो स्वीकार नहीं था
सचमे वही है ना जो बचपन मे हुआ करता था,
सब बेचैनी के साथ साथ तब सुकून भी मिलता था।
