बहिन अगर जो अपनी होती प्रद्युम्न अरोठिया
बहिन अगर जो अपनी होती प्रद्युम्न अरोठिया
बहिन अगर जो अपनी होती।
वो बाँध कलाई पर राखी,
माथे पर कुमकुम का टीका करती।
सच्चे मन से
वो भाइयों के लिए प्रार्थना करती।
बहिन अगर जो अपनी होती।।
प्यार और दुलार में
हम भी उसकी खुशियाँ बनते।
कभी खट्टी कभी मीठी
हम भी उसकी जिंदगी बनते।
बहिन अगर जो अपनी होती।।
रक्षाबंधन के पावन दिन
हर बरस सुनी कलाई न अपनी होती।
जीने को तो जीते हैं
पर इस खुशी से सूनी न अपनी बगिया होती।
बहिन अगर जो अपनी होती।।