भीतर की दुनिया
भीतर की दुनिया
जब तुम साथ होते हो मेरे
तो मैं और अकेली हो जाती हूँ
तुम्हारा साथ देह भर का ही तो है
मुझे मन का एक धागा चाहिए
जिसे लेकर बुन सकूँ मैं
अपनी रंगबिरंगी दुनिया
कुछ महकते नग़मे
ज़िन्दगी के
कुछ चहकती दास्तानें
हमारा साथ सहत्व लिए कहाँ होता है
तुम होते हो मेरे साथ
उन निगाहों की तरह
जो पहरा देती हैं
मेरी हर मुस्कुराहटों पर
मेरी गुनगुनाती आत्मा पर
यहाँ तक कि
मेरे वजूद पर
और मैं समेट लेती हूँ ख़ुद को
और -और भीतर
अकेली हो जाती हूँ मैं
निपट अकेली
उसी क्षण
क्योंकि मैं छिपा लेती हूँ ख़ुद को
ख़ुद से भी
कहीं स्वयं से मेरा साथ
तुम्हें पता ना चल जाए
और छीन ना लो तुम इसे
तब
जब तुम नहीं होते हो साथ
और मैं नहीं होती हूँ अकेली
मेरे अपने भीतर की दुनिया में जब
खिलखिलाते हैं
महकते हुए पारिजात।

