भीख नही है ये आरक्षण
भीख नही है ये आरक्षण
ऊँची नीच की इस खाई को
पटने दो अब यार
भीख नहीं है ये आरक्षण
है मौलिक अधिकार।
हर सत्ता ने हर मौके पर
दिया चोट पर चोट
दलितों के प्रति इनके मन में
छुपी हुई थी खोट
जब देखा तो घृणा से देखा
लूटा बस घरबार।
सदियों से जो लुटता आया
वही लुट रहा आज
पीड़ित ये बेचारे बोलो
किस पर करते नाज?
सिस्टम सारा भ्रष्ट देश का
कौन लगाये पार।
बिना परीक्षा जज बनते जो
वो क्या जानें न्याय
बेईमानी से करें फैसले
सिर्फ करें अन्याय
कानूनों की गलत समीक्षा
करते बारम्बार।
बिके मीडिया कवि लेखक जब
कौन दिखाये राह
करते हो तुम क्यों मनमानी
बन कर तानाशाह
काम करो तुम समरसता का
करो नहीं तकरार।