STORYMIRROR

भाषाएँ सारी बहनें हैं

भाषाएँ सारी बहनें हैं

1 min
382


हम नहीं कह सकते,

हमारी लेखनी को पढ़ें!

पर ज्ञान गंगा में गोता,

लगाने से हम क्यों डरें!!


खूंटे में बंधे निरीह भी,

क्रंदन करते रहते हैं !

वे भी अपनी आजादी,

की बातें सोचा करते हैं !!


फिर कब तक मेंढक,

बनकर फुदकते रहेंगे!

हम विभेदों के तिमिरों में

कब तक भटकते रहेंगे!!


हम तमाम भाषाओं का,

सदा गुणगान करते हैं !

भाषाएँ सारी बहनें हैं ,

उनको प्रणाम करते हैं !!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract