रे मानव ! कब तू जागेगा। रे मानव ! कब तू जागेगा।
काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।। काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।।
हम तमाम भाषाओं का, सदा गुणगान करते है! भाषाएँ सारी बहने है, उनको प्रणाम करते है!! हम तमाम भाषाओं का, सदा गुणगान करते है! भाषाएँ सारी बहने है, उनको प्रणाम करते ...
हमें यह ज्ञात है, आभास है, विचारों में विभेद हो सकता है, पर हर्ज क्या है? हमें यह ज्ञात है, आभास है, विचारों में विभेद हो सकता है, पर हर्ज क्या है...
मानव मानवता की खातिर जीवन में स्वीकार करो प्रथम प्यार।। मानव मानवता की खातिर जीवन में स्वीकार करो प्रथम प्यार।।