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Basudeo Agarwal

Classics

4.4  

Basudeo Agarwal

Classics

दोहा छंद "जगदम्बा महिमा"

दोहा छंद "जगदम्बा महिमा"

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(दोहा छंद)

नवराते हैं चल रहे, करें मात का ध्यान।

सबका बेड़ा पार हो, माता दे वरदान।।


मात हाथ सर पे रखें, बने सभी के काम।

परम सत्य इस विश्व का, माँ अम्बा का नाम।।


सभी उपासक मात के, चलो चलें दरबार।

ध्यान भक्ति मन में धरें, होगा बेड़ा पार।।


रोली अक्षत को चढ़ा, पूजें माँ को आप।

माता दें वरदान तो, मिटे जगत के ताप।।


माता का हम ध्यान धर, देवें कन्या-भोज।

दुर्गा के आशीष से, मिले मात सा ओज।


जगदम्बे वर आप दें, मस्तक 'बासु' नवाय।

काव्य रचूँ ऐसा मधुर, जो जग को हर्षाय।।

**********

दोहा छंद "विभेद"

दोहों के मुख्य 21 प्रकार हैं। ये 21 भेद दोहे में गुरु लघु वर्ण की गिनती पर आधारित हैं। किसी भी दोहे में कुल 24+24 = 48 मात्रा होती है। दो विषम चरण 13, 13 मात्रा के तथा दो सम चरण 11, 11 मात्रा के। दोहे के सम चरणों का अंत ताल यानि गुरु लघु (2,1) वर्ण से होना आवश्यक है। अतः किसी भी दोहे में कम से कम 2 गुरु वर्ण आवश्यक हैं। साथ ही विषम चरणों की 11वीं मात्रा लघु होनी आवश्यक है। इस प्रकार विषम चरणों के दो लघु तथा सम चरणों के भी 2 आवश्यक लघु मिलाने से किसी भी दोहे में कम से कम 4 लघु आवश्यक हैं। चार लघु की 4 मात्रा तथा बाकी बची (48-4) = 44 मात्रा में अधिकतम 22 गुरु हो सकते हैं। इस प्रकार अधिकतम 22 गुरु वर्ण से निम्नतम 2 गुरु वर्ण तक कुल 21 सम्भावनाएँ हैं और इन सम्भावनाओं के आधार पर दोहों के 21 भेद कहे गये हैं जो निम्न हैं। 

1.भ्रमर दोहा, 

2.सुभ्रमर दोहा, 

3.शरभ दोहा, 

4.श्येन दोहा, 

5.मण्डूक दोहा,

6.मर्कट दोहा, 

7.करभ दोहा, 

8.नर दोहा, 

9.हंस दोहा,

10.गयंद दोहा,

11.पयोधर दोहा, 

12.बल दोहा, 

13.पान दोहा,

14.त्रिकल दोहा, 

15.कच्छप दोहा, 

16.मच्छ दोहा, 

17.शार्दूल दोहा, 

18.अहिवर दोहा, 

19.व्याल दोहा, 

20.विडाल दोहा, 

21.श्वान दोहा।

इनमें 'भ्रमर' दोहा में 22 गुरु तथा क्रमशः एक एक गुरु वर्ण कम करते हुए अंतिम 'श्वान' दोहा में 2 गुरु होते हैं। दोनों छोर के एक एक मेरे स्वरचित दोहों की बानगी देखें।

भ्रमर दोहा (22 दीर्घ, 4 लघु)

बीती जाये जिंदगी, त्यागो ये आराम।

थोड़ी नेकी भी करो, छोड़ो दूजे काम।।


श्वान दोहा (2 दीर्घ, 44 लघु)

मन हर कर छिप कर रहत, वह नटखट दधि-चोर।

ब्रज-रज पर लख चरण-छवि, मन सखि उठत हिलोर।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©

तिनसुकिया


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