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Basudeo Agarwal

Classics

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Basudeo Agarwal

Classics

सोरठा कृष्ण महिमा

सोरठा कृष्ण महिमा

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नयन भरा है नीर, चखन श्याम के रूप को।

मन में नहिं है धीर, नयन विकल प्रभु दरस को।।


शरण तुम्हारी आज, आया हूँ घनश्याम मैं।

सभी बनाओ काज, तुम दीनन के नाथ हो।।


मन में नित ये आस, वृन्दावन में जा बसूँ।

रहूँ सदा मैं पास, फागुन में घनश्याम के।।


फूलों का शृंगार, माथे सजा गुलाल है।

तन मन जाऊँ वार, वृन्दावन के नाथ पर।।


पड़े न थोड़ा चैन, टपक रहे दृग बिंदु ये।

दिन कटते नहिं रैन, श्याम तुम्हारे दरस बिन।।


हे यसुमति के लाल, मन मोहन उर में बसो।

नित्य नवाऊँ भाल, भव बन्धन सारे हरो।।

दोहा की तरह सोरठा भी अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण सम कहे जाते हैं। सोरठा में दोहा की तरह दो पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में २४ मात्राएँ होती हैं। सोरठा और दोहा के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानि सोरठा में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।

दोहा और सोरठा में मुख्य अंतर गति तथा यति में है। दोहा में 13-11 पर यति होती है जबकि सोरठा में 11 - 13 पर यति होती है। यति में अंतर के कारण गति में भी भिन्नता रहती है। 

मात्रा बाँट प्रति पंक्ति

8+2+1, 8+2+1+2 

परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।

सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।


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