कहमुकरी (विविध)
कहमुकरी (विविध)
मीठा बोले भाव उभारे
तोड़े वादों में नभ तारे
सदा दिलासा झूठी देता
ए सखि साजन ? नहिं सखि नेता !
भेद न जो काहू से खोलूँ
इससे सब कुछ खुल के बोलूँ
उर में छवि जिसकी नित रखली
ए सखि साजन ? नहिं तुम पगली !
बारिश में हो कर मतवाला,
नाचे जैसे पी कर हाला,
गीत सुनाये वह चितचोर,
क्या सखी साजन, ना सखी मोर।
सपने में नित इसको लपकूँ
मिल जाये तो इससे चिपकूँ
मेरे ये उर वसी उर्वसी
ए सखा सजनी ? ना रे कुर्सी !
जिसके डर से तन मन काँपे
घात लगा कर वो सखी चाँपे
पूरा वह निष्ठुर उन्मादी
क्या साजन ? न आतंकवादी !
गिरगिट जैसा रंग बदलता
रार करण वो सदा मचलता
उसकी समझूँ न कारिस्तानी
क्या साजन ? नहिं पाकिस्तानी !