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pawan punyanand

Inspirational

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pawan punyanand

Inspirational

मानव हो जाओ

मानव हो जाओ

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रे मानव !

कब तू जागेगा?

कब तू समझेगा?

कब तू संभलेगा?

कौन तुझे बतायेगा ?

कौन तुझे समझायेगा?

किसकी बात तू मानेगा?

कब तू यह जान पायेगा?

बाँट लिए तूने ,

स्वयं ही स्वयं को

कितने भागों में,

जोड़ पाये वो धागा

कहाँ से तू ला पायेगा?

रंग ,जाति, वेष-भूषा,

प्रान्त,राष्ट्र, धर्मो में तू बंटा,

बता तू हीं मुझको,

क्या इससे ऊपर कभी

तू उठ भी पायेगा?

मानव -मानव में जब तूने

किये हैं इतने विभेद,

बाँट दिए सभी को सभी से,

जरा ना तुममे शर्म ना कोई खेद,

अब भी तो सम्भल जाओ,

अब भी तो बदल जाओ ,

छोड़ उन व्यर्थ बातों को,

मानव हो मानव हो जाओ।



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