बेटियाँ
बेटियाँ
जन्म से पहले, उसे कोख़ में ही मार देते हैं,
ये सोचकर की, बेटियाँ कमज़ोर है।
वो माँ तो कमज़ोर नहीं थी,
जिसने आपको जन्म दिया।
फ़िर कैसे सोच लिया,
की, बेटियाँ कमज़ोर है...
जन्म के बाद भी उसे किसी ने न समझा,
बेटे को पढ़ाया-लिखाया, और
जब बारी बेटी की आई,
तो, कहे दिया...
‘अकेली पढ़ने नही जा सकती’
क्योंकि, बेटियाँ कमज़ोर है।
फिर भी वो आगे बढ़ी,
कठिन परिस्थितियों का सामना किया,
अपने सपनों को साकार किया,
साथ ही अपने परिवार को भी जोड़े रखा,
इनता सब किया, फिर भी...
लोगों ने,एक पतंग के तरह
उसकी ‘डोर’ को काँट दिया।
जब हिम्मत न थी उसका सामना करने की,
तो उसके साथ ‘रेप’ किया
ताकि उसकी हिम्मत टुट जाएं,
वो बिखर जाएं, उसका परिवार झुक जाएं,
फिर भी, वो ना रुकी, ना झुकी,
नाही ‘लोग क्या कहेंगे’ उसके बारे मे सोचा,
और नाही,
उसके भविष्य को बिखरने दिया।
फिर से जिंदगी की नई शरुआत की।
फिर से नई मंज़िल हासिल की।
इससे तो कई गुना ज्यादा अन्याय,
और मुसीबतों का सामना करती हैं ‘बेटियाँ’,
फिर भी, कितनी आसानी से लोग कहे देते है,
की, बेटियाँ कमज़ोर है।
कमज़ोर बेटियाँ नहीं....
कमज़ोर तो आपकी ‘सोच’ है।
