बेटियाँ बचाओ
बेटियाँ बचाओ
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बलात्कार की घटनाओं ने देखो,
मुझे अब कर दिया है यूँ आगाह !
या घर बैठा कर रखो बेटियों को,
या रात में किया जाएगा शवदाह !
उत्तर, पूर्व, दक्षिण या हो पश्चिम,
स्त्री-जिजीविषा हो रही अब क्षीण !
बचपन में बच जाती है मृत्यु से तो,
लील जाती है उन्हें वो नज़रें स्याह !
माँ-बाप बड़े नाज़ों से उसे पालते हैं,
लोग उसपे ओछे फिकरे उछालते हैं !
न बाहर ही वो सुरक्षित,
न ही अंदर,कहाँ जाकर
मिलेगी बेटी को पनाह ?
बाप हूँ भविष्य को सोच के काँपता हूँ,
समाज का प्रचलन क्या है,
भाँपता हूँ !ये घटना हो
किसी के साथ भी दोस्तों,
अंदर बैठे बाप को दुःख होता अथाह !
ऐसे पशुओं को जीने का अधिकार नहीं,
सज़ा दो, सिर्फ़ करना न प्रतिकार यूँ ही !
रसायनों के प्रयोग से छीन लो पौरुषत्व,
मैं बस देना चाहूँगा, सब को यही सलाह !