बेदर्द तारीख़ें
बेदर्द तारीख़ें
पिरोकर रखी हैं
जो दिल में
अपनी छुपी
सिसकियों को
बाहर लाना चाहती हूँ
ज़ख्म जो
खुले पड़े हैं
कब से रूह में
कतरा कतरा ले कर
बूँदे आँखो से
पलकों से अब
गिरा देना चाहती हूँ
कुछ तारीख़े
ले आती हैं
बेहिसाब दर्द
उन तारीखों से
मिले दर्द के
लम्हों को
कुतर कर
फेंक देना चाहती हूँ
संजोकर रखी हैं
आँखो में
कटी फटी सी&nbs
p;
ख्वाहिशें मेरी
निचोड़कर उन
.ख्वाहिशों को
अपने ज़िस्म को
ख़ाली कर
देना चाहती हूँ
क्यूँ और कब
तक रखूँ
औरों से मिले
घावों को समेट कर
खंजर से अब
ख़ुद के जिग़र को
चीर कर
बूंद बूंद बस
बहा देना चाहती हूँ
बस अब बस
सकूँ की आगोश में
पलकें मूँद लेना चाहती हूँ
जो कभी न टूट सके
ऐसी नींद लेना चाहती हूँ ॥