बेगाने लफ़्ज़
बेगाने लफ़्ज़
मेरे अश्क मेरे लफ़्ज़
मेरे नहीं रहे अब
ना जाने मुझे ये भी अब सज़ा देते हैं
कुछ दिनों से
मेरे लफ़्ज_ए_अंदाज़ बदल गए है
ख़ुद को लिखते नहीं
बस खामोशियों से खेलते हैं
लिखने लगती हूँ जब भी
बस मेरे आँसूओं को ही ताकतें हैं
कुछ दिनों से
मेरे एहसासों के दाम गिर गए हैं
किसी को समझ नहीं आते
बस मुझ में ही जज़्ब रहते हैं
कह नहीं सकती मैं अब किसी से
मेरी ही खामियों को गिनवाते हैं
कुछ दिनों से मेरे लफ़्ज़
मेरी खताओ की कहानी लेकर आते हैं
इक दर्द की लहर में उलझे हुए
मेरे जज्बातों को निगल जाते हैं
देतें हैं अब मुझे शायद ये भी सज़ा जो
मेरी मजबूरियों को मेरी जफ़ा बतातें हैं
