सिमटी सी दास्ताँ
सिमटी सी दास्ताँ
कहर बन इक इक
हर्फ़ लबों को चीरने लगा है
इक ज़माने से
जो ठहरे थे मुझमें
दर्द की स्याही में डूब
एहसास-ए-लफ़्ज़ यादें चुन
कोरे पन्नों पे बिखरने लगा है।
अश्को के धागे यादों के मोती
जज़्बात ए लफ़्ज़ को पिरोने लगा है
दबा रखी थी जो गहराई
रूह ए समुंदर में
अब आंखों में बरबस हीं तैरने लगी है।
दम निकला है अब
शायद मेरी ख़ामोशी का
जो उबर कर पलकों के रास्तें
अधरों से टकराने लगा है
हर्फ़ हर्फ़ जोड़
मेरी अधूरी कहानी को
पूरा करने लगा है।
मुद्दत से खोये खोये थे हम
यादों में रोये रोये थे हम
कह नहीं सकते थे कुछ भी किसी से
जुबां पे लफ़्ज़ सोये सोये से थे
अब इस क़दर टूटे की
चीख़ उठे हम।
तन्हा थे तन्हाई संग
पर अब लफ़्जों का
साथ मिलने लगा है
दर्द में डूब कर
मेरा हर इक लफ़्ज़
कोरे पन्नों को भरने लगा है
कहर बन इक इक लफ़्ज़
लबों को अब चीरने लगा है।
यादें लिए
मेरा हर ज़ख्म
मेरा हर दर्द-ए-ग़म
छपने लगा है
मेरी डायरी का हर पन्ना
अब मेरा हमराज
बनने लगा है।
