बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
1 min
163
क्यूँ
बदल जाते हैं
बातों के अंदाज़
अपनों के
जब
तक़दीर के घरौंदे
उजड़ते है...
क्यूँ
नहीं समझते की
उनके तानों से...
हमारे दर्द भी
तहों में रिसते है
तक़दीर का क्या
आज नहीं तो
कल संवर जाएगी....
पलट कर गर वार हो
हमारी तरफ़ से
तो सोचो
तुम्हारी हैसियत क्या रह जाएगी ...
क्यूँ
बदल जाते है
लहज़े अपनों के
जब
क़िस्मत के जेब
उधड़ते हैं ..
