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Jyoti Agnihotri

Tragedy

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Jyoti Agnihotri

Tragedy

बेबसी

बेबसी

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वह गरीब है इसीलिए

अपने हक तक के लिए

बेबसी में हाथ फैलाये खड़ा है,

धनिक इस नज़ारे से भी

मन बहलाये खड़ा है।


भुखमरी-दुर्दान्तता-बेबसी उसकी

नहीं उन्हें है कचोट रही,

अभिमान से भरी विलासिता

खुद को खुद ही में समेट रही।


कतार की कतार मैले कुचैले

हाथों को लिए खड़ी है,

उसकी तो पीढ़ी दर पीढ़ी

बस इसी बेबसी में गढ़ी है।


विलासिता में अंधी आँखें

सदियों से जमीं गर्त,

उसके हाथों की न देख पा रहीं

स्वार्थान्ध आत्माएँ बस स्वार्थ अपने

उनकी आहों पर सेंक पा रहीं।


गरीब है इसीलिए अपने हक,

तक के लिए हाथ फैलाये खड़ा है।

नहीं-नहीं शायद अपनी,

किस्मत आज़माए खड़ा है।


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