बदरंग
बदरंग
हालात न सुधरे और बिगड़ते गए
वस्त्रों के नये बहाने से वह नंगा करते रहे।
चिथड़ों की बनाकर लाश फूल सजते रहे
मातम पर हमारी वह बादशाहत करते रहे।
मगरमच्छ के आँसू कोई समझ न पाया
हौले-हौले दरख्तों में वह हमें दबाते गए।
बदरंग होती आबोहवा समझ न आयी।
मची तबाही को खुली आँखों से देखते गए।
पूरा परिवार लाश में तब्दील हो गया।
शहीद की शहादत पर अंगारे दहकते देखे गए।
भावनाएँ खेलती रही खिलौनों सी दिमागों से
धुंद में नशे के लड़खड़ाते जकड़ते गए।
आगे ना पीछे कोई हैं जिनके
लाशों के अंबार नाम के लिए लगाते गए।
