बदल जाने को
बदल जाने को
मेरे दिल से उठते हैं
धधकते हुए शोले
जाने किसका अंधेरा
मिटाने को
यह रात भी ख़ामोश है
जाने क्यों सुलग जाने को
मैं अधरों के बासीपन को
उनके ज़ख्मों की सादगी कहता हूँ
उनकी आंखों गहराई
जाने क्यों बेताब है
खुद में डूब जाने को
आइनों की महज़ बस
इतनी सी बिसात है
वो सच कहते हैं
बस एक नज़र चाहिए
रूह को असर लाने को
मेरा ऐतबार कितना खोखला निकला
कोई नहीं जानता इस बात को
यह वही कह सकता है
जो प्रार्थना में रहता हो
अपने अन्तःकरण में जाने को.....
ऐसा कोई शख़्स नहीं
जिसका मैं गुनेहगार नहीं
ऐसा कोई रिश्ता नहीं
जिसका मैं पशेमाँ नहीं
सभी ख़ामोश है मग़र
आज नहीं तो कल
बस मेरे बदल जाने को।