बचपन की बारिशें
बचपन की बारिशें
अब तो महज़ बूँदें बरसती हैं,
बारिशें तो बचपन में होती थीं,
नटखट बूँदों के संग छप-छप
नन्हें कदमों की होती थी,
नन्हीं हथेलियों पर ठहर जाती थीं बूँदें,
मिट्टी में गुम नहीं होती थीं,
उदास हो जाती थीं छतरियाँ,
बेफिक्र हो बारिशें नन्हें तन को भिगोती थीं,
दौड़ ज़िन्दगी की नहीं कागज़ की
कश्तियों की होती थीं,
बारिशों की टिप-टिप के संग गूंजती
किलकारियों से छतें गुलज़ार रहा करती थीं,
अफसोस की बचपन वाली वो बारिशें अब नहीं होती,
हाँ, उदास सी कुछ बूँदें चुपचाप बरसती हैं।