बैरी चाँद
बैरी चाँद


धीरे-धीरे, वक़्त गुजरे
तब दिन के बाद आये शाम।
वक्त नहीं मिलता, खुद के लिए,
और छूना चाहुँ अपना चाँद।
कशिश तो है इतनी, के जा सकता हूँ,
बाँहो में, चाँद की,
बस कट जाए ये लम्हे मेरे इन्तजार की।
वक्त का तकाजा भी है कुछ ऐसा,
चाँद मेरा भी है मुझ जैसा।
समेट के अपने पलको में ढेरों याद,
मिलने के इन्तजार में,
मैं और मेरा "" बैरी चाँद ।""