तर्पण
तर्पण
चाय की प्याली और बिस्किट के साथ,
कुछ बीते लम्हे, कुछ मीठी बात।
आँखों में लिए सपने के रंग,
आई जब अपने पिया के संग।
नया घर था, नया घराना,
कभी अपना सा लगे, कभी अनजाना।
तब आई थी एक प्यारी सी थपकी,
मुस्करा कर कहा, अपना हैं सब,
खुश रहो, कभी ना घबराना ।
थपकी थी, या बुर्जुग का आशीर्वाद,
हर पल, हर घड़ी, जो रही हमारे साथ।
याद हैं, आज भी वो प्यार भरी लम्हें,
समझ जाना उनका, मेरी हर बात जो थे अनकहे।
देखा है उस मुरझाते चेहरे को फिर से खिलते हुए,
नन्ही कदमों के आहट के साथ फिर से चलते हुए
बच्चों के बचपन में, खुद की तस्वीर देखना,
कभी गाड़ी, कभी घोड़ा, बन हँसना और खेलना।
भूले न हम, सबको उस मोड़ पे जाना है,
आज है हम जीवन की व्यस्तता में,
कल हमें भी बुर्जुग कहलाना है।
रहे ऐसे हम के हर पल यादगार रहे,
तकरार कितनी भी हो, हर रिश्ते में प्यार रहे।
हाथ रहे उनका हमेशा, हमारे सिर पर,
सिखाया है जिसने चलना हमें,
जिंदगी की आँधियों से बचकर।
हमारी परवरिश में जो कर देते हैं अपना जीवन अर्पण,
अब वक़्त हैं हमारा हम करे उनके जीवन को "तर्पण"