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Supriya Bikki Gupta

Inspirational

4.2  

Supriya Bikki Gupta

Inspirational

नारी मूर्ति नहीं इंसान है।

नारी मूर्ति नहीं इंसान है।

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मुस्कराहट को सजाए अपने होंठों पर, 

हर आँधियों को पार कर जाती है। 

आँखों में लिए ममता की नमी, 

सभी को हौसलों से भर जाती हैं।


उम्र की दहलीज हो कोई भी, 

हर रुप में कर्तव्य निभाती हैं, 

समेट के अपने ही सपनों को आँचल में, 

सपने सभी के सजाती हैं। 


पायल की छन-छन से जिसके, 

हर घर जब मुस्कराता हैं। 

तो क्यों इसी हँसी को,&nb

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खिलने से पहले ही दबाया जाता हैं।


नारी ने हमेशा की इस समाज की सिंचाई है, 

दहलीज को पार कर पाया अपनी ऊंचाई हैं। 


सावित्री ,लक्ष्मी, सीता कह-कह कर, 

रखा था पिंजरे में जिसे 

उसका अब ये सारा आसमान हैं, 

प्रेम, शक्ति, ममता, और स्नेह से बनी, 

" नारी मूर्ति नहीं इंसान हैं "।



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