बावरी
बावरी
एक हसीन सी शाम आई,
एक शहजादा नजर आया,
एक ऐसी मुलाकात आई,
एक उम्दा मकाम आया...
देखा उसे और नज़रों में जान आई,
उसे देखा और खयाल में एक ख्वाब आया,
उसकी हसरत की तस्लीम हुईं,
उसपर बेइंतहा मुझे प्यार आया...
उसके दीदार की घड़ी आई,
जमाना उसका दीवाना बन आया,
उसके इंतजार में मेरी नब्ज थम आई,
इतना उसपर प्यार बेशुमार आया...
चाहने वाली सवरकर तो कई आई,
वह हर एक को मजधार में छोड़ कर आया,
कहता है सबको सखी सहेली,
न जाने कौन सी राधा से मुंह मोड़ कर आया,
देख रासलीला उसकी छोड़ जाने की बात आई,
वह मेरी वफादारी के वजह ले आया,
देख कर गोपिया उसकी मेरा मन सिकुड़ जाता,
वह मुझे साथ रखने के लिए एक झूठ ले आया...
ना आई राधा ना उसकी रुक्मणी आई,
न जाने वह मुझे कौन सा नाम दे आया,
ना चाह कर भी मैं बावरी सुध खोकर आई,
न जाने वह मन में किसका नाम ठानकर आया !

