किरदार
किरदार
सहम उठी हूं इन रोज के मंजरो से,
ना मैं खत्म हो रही ना किरदार मेरा।
सब ठीक होगा एक रोज इन तमाशों से
ना मेरी हिम्मत टूट रही ना इंतजार मेरा।
अंधेरे में ढूंढ रही हूं रोज रोशनी ना होने से,
ना कुदरत रहम कर रही ना नसीब मेरा,
रोज अश्कों से भीगती है पल्के धोखे से
ना मौत आ रही ना आ रहा सबर मेरा।
ज़हन साफ रखकर रोज पुछा है आईने से ,
ना पता कमी मेरी ना पता धोखा मेरा,
रोज वक्त आता है नया इम्तिहान लेने से
ना रहती तैयारी मेरी ना रहता ठिकाना मेरा,
छिन जाता है सब कुछ मेरा होने के दावे से,
ना मिलता मुझे कुछ ना होता कुछ मेरा,
लड़ती हूं बस जमाने को मेरा वजूद दिखाने से,
ना रहती रात कभी मेरी ना होता दिन मेरा..
मिट जाऊं तो शायद कुछ बात हो मेरी,
ना मैं खत्म हो रही ना किरदार मेरा!
