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Jayshri Rajput

Inspirational

4  

Jayshri Rajput

Inspirational

स्त्री

स्त्री

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स्त्री को जिसने जैसा चाहा

वैसा परिभाषित किया...

कभी चाँद कहा,

कभी मृगनयनी

कभी चंचल कहा

कभी मंदाकिनी...

कभी कह दिया

फूलों सा नाज़ुक

कभी कह दिया

क्यों इतनी हो भावुक?

कभी कहा गया

देवी का स्वरूप

कभी कहा गया

ममता का रूप

पर सिर्फ़ कह देना,

होने का प्रमाण नहीं होता

क्योंकि उसी स्त्री को कह दिया

किसी ने मुसीबत की जड़

हक़ की आवाज़ जो निकली मुख से

तो कह दिया बदतमीज़ और अक्खड़

फूलों सी नाज़ुक कहकर

जब चाहा उसको दिया मसल...

उसने जब अपने मन की करनी चाही

तो कह दिया कि ये तो

हाथों से गयी है निकल

ख़ुद बनना चाहा

हर बार उसका मालिक

उसको कह दिया

पैसों के पीछे भागने वाली..

पर जब काबिल होकर वो

उठाने लगी मर्द के भी खर्चे

तो कह दिया कि बड़ा है गुरूर!

और इसी गुरूर को तोड़ने की ख़ातिर

कभी किया बलात्कार,

कभी दिया तेजाब डाल..

कभी दहेज़ की आग में जला दिया

कभी कोख़ में ही क़त्ल किया!

और फिर एक दिन

बना दिया उसके नाम का

जो कि दर्शा सके

उसकी महानता...

और छुपा सके,

सारे घिनौने रूप

इस समाज के...

स्त्री को समझने से

कहीं ज़्यादा आसान है

उसके बारे में कुछ भी

लिख देना...

इसलिए ही कभी बुराईयाँ

लिखी गईं उसकी

तो कभी तारीफों के

क़सीदे पढ़े गये...


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