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Anju Singh

Abstract

4.3  

Anju Singh

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बावरा मन

बावरा मन

2 mins
421


नई सी इस दुनिया में

कभी मन पुराना सा रहता है

कुछ पहले सा ढूंढता रहता है

कुछ उधेड़बुन में रहता है

जों बावरा मन कहलाता है


ये चंचल मन कभी

पंछी बन जाता है

दूर दूर तक जाता है

कभी इस पल यहाॅं

कभी उस पल वहॉं

कभी पंख लगा उड़ जाता है


कभी मन में होता कुछ शोर सा 

कभी ये मन चित्त भोर सा

कभी होती कुछ हलचल

मन में जैसें उथल-पुथल

ये बावरा मन जानें क्या चाहता

यूं फुदककर कहीं उड़ जाता


कभी बेवजह सवाल है करता

दिल हमारा मुश्किल में पड़ता

कभी रूठने की बात है करता 

जाने़ क्या यह चाहता है 

बावरा मन कहलाता है


मन होती कागज की नाव

जाने़ कब किधर चलें

इसकी चंचलता के क्या कहनें

हर पल नया स्वांग रचें

और कभी रोके ना रुकें

तभी हम इसे बावरा मन कहें


तूफान सा जब उठता है दिल में

मन बंध जाता है मुश्किल में

क्या करें किस ओर जाए

मन ये कुछ समझ ना पाएं

तभी यह बावरा मन कहलाए


कभी रहता खुशियों से लबरेज

कभी यू उदास निस्तेंज

कभी देखता एक सपना

कभी हकीकत में रहना

क्या चाहे कोई जाने ना 

बावरा मन ये मानें ना


मन मेरा अंतर्मन से

कई सवाल जवाब करता है

कितने़ सोच में डूबा रहता है

यादों में खोया रहता है।

बावरा मन ये मेरा

कुछ कुछ लिखता रहता है


ये मन‌ बिन सोचें समझें

कुछ बिन जाने बिन परखें

बस यूं ही चल देता है

हवा के संग बहता है

चंचलता दिखलाता है

जानें किस ओर भागता जाता है

बावरा मन कुछ कहता है


लाख जतन करूं पर 

यह समझ ना आए

आस लगाए बैठी रहूं

कभी सुध ना आए

जिद्दी सा यह मन 

बावरा होता जाए


मैं रोकूं चाहे जितना

भागे उस ओर उतना

इसका ना कोई छोर

ना कांटे कोई डोर

खुद में ही आत्मविभोर

उड़ चलें हमेशा उस ओर!



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