बातें ख़्वाबों की
बातें ख़्वाबों की
बातें ख़्वाबों की, इन आँखों में ख़्वाब ही बनकर रह गई,
हक़ीक़त के आईने में ये ज़िंदगी, खाली हाथ ही रह गई।
वादा किया था वादा निभाने का ख़्वाबों को सजाने का,
ख़्वाब भी टूट गए वादे भी जुबानी बात बन कर रह गई।
समझते रहे जिसे अपना हम, वो तो किसी और का था,
पल-पल उसकी बेरुखी, दिल की दरार बन कर रह गई।
वो कहने को थे बस हमसफ़र, साथ कभी चले ही कहाँ,
छांँव को तरसते रहे हम, ये ज़िन्दगी धूप बनकर रह गई।
दिल के कोरे काग़ज़ पर लिखने चले थे जो कहानी हम,
इस जन्म में वो तो केवल दर्द की दास्तां बनकर रह गई।
ना जज़्बात समझे वो ना ही आँखों से बहते अश्कों को,
टूटे ख़्वाबों के टुकड़ों जैसी ख्वाहिशें बिखरकर रह गई।
वफ़ा की चाहत आखिर किसे नहीं रहती है मोहब्बत में,
पर हमारी मोहब्बत तो, केवल सज़ा बनकर ही रह गई।
ऐसी सजा जिसकी आगोश में बस सवाल ही सवाल हैं,
एक बेवफा के लिए ये ज़िन्दगी इंतजार बन कर रह गई।
एक पल भी ना रूका वो, कैसे कहते कोई बात दिल की,
दिल की चाहत दिल में दफ़न एक पुकार बनकर रह गई।
सोचा था अपनी मोहब्बत का वास्ता देकर रोक लेंगे उसे,
पर ये उम्मीद उम्र भर के लिए, उम्मीद ही बनकर रह गई।
अब ना कोई ख़्वाब आंँखों में, ना रही जीने की ही तमन्ना,
चंद सांँसों की ये ज़िंदगी ख़ामोश किरदार बनकर रह गई।
उसने तो कभी सुध ही न ली हमारी, ज़िंदा हैं भी या नहीं,
जिसे जिया करते थे कभी,वो महज़ याद बन कर रह गई।
कैसे नहीं मुरझाते, इस दिल के उपवन में खिले जो फूल,
जब ज़िंदगी की कहानी ही,अधूरी दास्तां बनकर रह गई।
एक ऐसी दास्तां, जिसने किस्मत ने भी खेला ऐसा खेल,
कि रास्ते बदल गए और ज़िन्दगी, दीवार बनकर रह गई।