बात न करो जाने की
बात न करो जाने की
खामोश शहर की ख़ामोश खामोश रातें
अपने दर्द की खामोशियाँ बयाँ कर रही हैं
रात कोई मनचला तूफान आया होगा
खौफनाक मंज़र की कहानियां बयाँ कर रही हैं
काश! खामोश रह कर अगर सुन लेते
यकीन करो अब तलक उनके हो गए होते
ख्वाहिशों के खुले आसमान में उड़कर
खुद को भुलाकर उसकी यादों में खो गए होते
उनकी यादों में अब हिचकियाँ भी नहीं आती
वरना अब तलक तड़प कर हम रो गए होते
हर शाम फीकी लगती है यहाँ जिनके बिन
गर पास होते तो उनकी बाहों में सो गए होते
टिप टिप गिरता पानी और उनका भीगा बदन
काश! आषाढ़ की वही मौसम फिर लौट आए
बादलों को देख कर मंद-मंद उनका मुस्कराना
काश ! इश्क का मतवाला मौसम फिर लौट आए
ज्यादा कुछ नहीं बस इतना ही तो मांगा था
इस सावन ख़ूब बरसना इस दिल के आंगन में
संभल कर चलना यौवन की बलखाती राहों में
डरता हूँ कहीं कोई कांटा न फंस जाए दामन में
अब तलक जो भी गया लौट कर नहीं आया
यहां आज भी है इंतज़ार हर पल उनके आने का
यहां रात अभी बाकी है, वहां भोर है सोई
अभी अभी आए हो ख्याल न आए जाने का
सांझ ढले ठुमक-ठुमक कर तुम्हारा चले आना
जैसे सागर में समाने को बेताब प्रेम की नदियाँ
यकीन करो या न करो अब तुम्हारी मर्जी
तुमको भुलाने में गुजर जायेंगी हज़ार सदियाँ।