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Savita Patil

Tragedy Inspirational

4.8  

Savita Patil

Tragedy Inspirational

बारिश क्या कहती है

बारिश क्या कहती है

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सुनो, बारिश क्या कहती है !

ये रिम-झिम – सी खामोश

अब कहां बरसती है,

मिज़ाज इसका बदलने लगा है,

क्रोध इसमें झलकने लगा है !

 

रूठती है तो मानती ही नहीं,

करो इंतजार और ये आती ही नहीं,

जब बरसती है तो कहर आ जाता है,

कहीं कोई बाढ़ में डूबा, तो

कहीं कोई सुखा ही रह जाता है !

 

पर, सदा न ऐसी बारिश हुआ

करती थी,

एक ठहराव था इसमें

एक सादगी हुआ करती थी !

आती थी यूं छम-छमाकर

मानो, नार-नवेली नकली

सज-संवरकर,

अब तो सबको हर लेना है,

फिर बरस बाद का मिलना !

 

आज जैसे क्रंदन में बरसती है,

किसी वेदना में तरसती है,

सुनो, बारिश क्या कहती है !!

 

धरा ने जो कुछ सहा

मेघों से शायद होगा कहा,

वृक्ष-वृन्त जो काटे गए

मनुज – स्वार्थ में छाटे गए,

व्यक्त न हो पाया तो क्या ?

लाल नहीं था रंग

रक्त न हो पाया तो क्या ?

रिक्त होता धरणी का आंचल

अब बादलों को सुहाता नहीं,

कलि का हो रहा तू दास

तेरा सर्वनाश, मानव, तुझे

दिखता नहीं !

 

रूद्र रूप ये शिव-वृष्टि का,

तेरे अतिक्रमण पर ये उत्तर सृष्टि का,

दे रही चेतावनी, चिखती-चिल्लाती है,

सुनो, बारिश क्या कहती है !!

सुनो, बारिश क्या कहती है !!


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