बापू तुमको भूल रहे हैं हम
बापू तुमको भूल रहे हैं हम
देश बाँटने की हाँमी कैसे बापू तुमने भर दी ।
क्या लालच या मजबूरी थी, जो ऐसी गलती कर दी ।
लाखों लाशें चीख रही हैं, तुम पर प्रश्न उठाती हैं ।
अब भी यादें उस मंज़र की, शोलों को भड़काती हैं ।
कैसे बापू हो भारत के, जो बँटवारा कर आये ।
घर में आग लगाकर उससे, सहज किनारा कर आये ।
तुमने जो आदर्श दिए हैं, वहीं क़बूल रहे हैं हम ।
सच तो ये है तुमको बापू, दिल से भूल रहे हैं हम ।।