औरत
औरत
औरत महज शरीर नहीं ,बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है!
वह प्रेमपंथ में प्रेयसी है, कठिन डगर पर पत्नी,
मित्रों की भीड़ में परम सखा,जो अँधेरों में देती रौशनी,
बुरी नजरों से बचाती है, चाहे खुद बुरी बन जाती है,
तीज-त्यौहार पर भूखी रह,अपना सौभाग्य बढ़ाती है।
औरत महज शरीर नहीं,बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है!
ममतामयी माँ है वही, रक्षक नौनिहालों की,
अपने रक्त से सृजित करती,अक्षुण्ण स्रोत है अमृतधारे की,
कठिनाईयों में भी मधुर मुस्कान ओढ़े रहती है,
सच है! संसार की सुंदरतम रचना मुफ्त मिला करती है।
औरत महज शरीर नहीं ,बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है!
वह ध्रुव तारे सी चमकीली है,बच्चे आँचल में छुप जाते हैं,
लुका-छिपी में चोट लगे तो, हरदम पास ही पाते हैं,
अपने बच्चों के संग-संग, वह भी पल-पल बढ़ती है,
उनके ही सपने आँखों में लिए, पालन-पोषण करती है।
औरत महज शरीर नहीं, बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है!
वही औरत जब बात- बात पर,नयन भिगोने लगती है,
मन वही-ममता वही, बदली- बदली सी लगती है,
व्यस्त हो जाते हैं बच्चे ,जब उम्र उसकी ढलती है,
स्नेह की जगह असुरक्षाओं में जीने लगती है।
औरत महज शरीर नहीं, बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है।
कमज़ोर होते तन में मन भी व्याकुल होता है,
आँखों में आह्लाद की जगह भय घर कर लेता है,
सृजनात्मकता के अपने गुणों को भूल जाती है,
कमज़ोर पड़ती आँँखों में अपनी छवि भी विस्मृत पाती है,
यह भी याद नहीं रहता कि,
वह महज शरीर नहीं, बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है।
जिसे सकारात्मक हो आध्यात्म मार्ग पर चलना है,
जबतक जीवन है ,शक्ति स्वरूपा को स्वधर्म पर रहना है,
क्योंकि आत्माएँ मरती नहीं, ना अशक्त हुआ करती हैं,
प्रतिपल -प्रतिक्षण, आत्मिक उत्थान किया करती है,
शाश्वत है वह नश्वर नहीं,यही सच्चाई है कि,
औरत महज शरीर नहीं, बल्कि एक खूबसूरत आत्मा है।
