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Arya Jha

Tragedy

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Arya Jha

Tragedy

फिर भी मैं पराई हूँ!

फिर भी मैं पराई हूँ!

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पीर क्या समझेगी हमारी, 

ये तो दूसरे घर से आई है, 

हम सब के सुख-दुःख एक,

 यही यहाँ पराई है!


सबकी सुनकर, मन में गुनकर,

समझ गई उनकी व्यथा....

जहाँ से चली थी,वहीं लौटी जब,

सुनी वहाँ एक अलग कथा.....!


ख़ैरियत तो है सब ?

कैसे आई यूँ अचानक!

मायके का सम्मान बढा,

जितनी जल्दी हो लौट जा!


यहीं जन्मी, यहीं बढी,

अपने निशां ढूंढने आई हूँ, 

और आपसे कुछ ना लूँगी,

अपना पता पूछने आई हूँ।


आना सहचर के ही साथ,

दिया जिन हाथों में तेरा हाथ, 

अकेली भटकी तो छूट ना जाए,

रह ना जाए तू खाली हाथ !


लौट आई फिर उलटे पाँव,

लेकर मन में घाव,

कल तक सब कहते थे छुटकी,

सब मेरे थे और मैं सबकी,

आज बनी पराई हूँ।


भारी कदमों से चलकर,

वापस लौटकर आई हूँ,

कहने को दो-दो घर मेरे,

फिर भी मैं पराई हूँ !


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