क्षितिज
क्षितिज
अपनी किताबों में उलझे से,
काले घुंघराले बाल थे, सुलझे से,
आँखों में प्यार भी था,कुछ जुनून भी,
वैसे ही पढ़ रहे थे....जैसे वो किताबें ज़रिया हैं,
हमें मिलाने का|
सदा के लिए एक कर जाने का|
तभी तो देखती हूँ,
वही चेहरा धीर -गंभीर सा,
किताबों में उलझा सा,
नज़रों से समझाता सा, मैं, तुम्हे समझती सी,
ख़ामोशी को भी, महसूस करती सी, नज़रों को पढ़ती सी, आश्वस्त करती सी,
और भी कुछ देखा, बड़ी दूर से, तुम्हे सहेज रही थी औरों के नज़रों से,
जैसे कोई नायाब से तुम, हो ना जाओ भीड़ में ग़ुम, कुछ दिखे चेहरे, जाने -पहचाने,
जिनका होना-ना होना था बेमाने|
..........……………………
पर नींद से जाग गयी हूँ,
ओह !तो ये ख्वाब था, बीती रात का ख्वाब!
क्या कहने आया था, कुछ साथ लाया था,
वही उत्साह, वही अल्हड़पन,ढेरों खुशियां, वही बांकपन,
फिर सोचने लगती हूँ,
बड़ा प्यारा ख्वाब था, सारे कौमार्य,भोले -भाले,
अहसासों से भरा,
आभास था कि, कुछ तो रह गया...
अनकहा -अनसुना,
तभी तो सपनो में आकर ,
सारे दिन के लिए संजीवनी देकर ,
कुछ कह गया..........
क्या मैं भी, कभी युहीं,
भूले भटके,
तुम्हारे सपनों में आती होऊँगी ?
कुछ तो तुम्हारे अंदर हलचल मचाती होऊँगी,
कभी किताबे छीन कर, थोड़ा सताती होऊँगी, इन उलझे तारों को कैसे सुलझाऊँ,
अपने दिल पर हाथ रख,
तुम्हारे हालातों को समझ जाऊं ?
बंधनों में बंधे हम- तुम,
सोचती हूँ गुमसुम,
क्या ये कम है कि प्यार मिला तुम्हारा,
अद्भुत सा आत्मिक बंधन,
और मैं मस्तानी,
उम्र-समय की सीमाओं से परे,
बस बनी रही.........दीवानी -तेरी दीवानी !
माना सबकुछ बदल गया,
प्राथमिकताएं बदल गयी,
सुर -ताल बदल गए,
सारे जग के चाल भी बदल गए फिर भी........
हमें इतना यक़ीन है तुम पर और खुद पर, गर कभी दिल धड़का, अरमान जगे,
एक पल के लिए ही सही,
तुम्हे- हम, हमें -तुम,
याद आयेंगे, और मुस्कुरायेंगे !!
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आपकी
आर्या झा