औरत तुझको पन्नों पर.....
औरत तुझको पन्नों पर.....
औरत तुझको पन्नों पर, कोई क्या और कैसे लिखेगा?
तेरा मर्म, तेरा कर्म, शब्दों में कैसे और कितना दिखेगा?
तू वेद है, तू ही यज्ञ है, तू स्वाहा और स्वधा भी,
शब्दों की वेदी पर, तुझको हवन कैसे कोई अर्पण करेगा?
औरत तुझको पन्नों पर, कोई क्या और कैसे लिखेगा!!!!!
जीवन तेरी नाभि से सिंचित, और धमनी तेरी शोणित से,
चैतन्य तेरी ममता से सिंचित, और शरीर तेरी दोहज से,
तू धर्म है, तू ही सार है, तू पुराण और मंत्र भी,
जीवन के मतलब को, तुझ बिन कोई कैसे पूरा समझेगा?
औरत तुझको पन्नों पर, कोई क्या और कैसे लिखेगा!!!!!
तू कर्म का जागृत रूप है, तू ही संतुष्टि की सुंदर काया,
तू आस का बरगद भी है, तू शांति की वो अनमिट छाया,
तू व्यास है, तू ही गीता है, तू अर्जुन और कृष्ण भी,
संसार के भवसागर को, तेरे बिन कोई कैसे पार तरेगा?
औरत तुझको पन्नों पर, कोई क्या और कैसे लिखेगा!!!!!
