अतिथि तुम कब जाओगे
अतिथि तुम कब जाओगे
हर छुट्टियों में नानी घर हम जाते थे, मस्ती खूब मचाते थे,
एक बार दादी बहुत बीमार हुई, मम्मी मायके न जाने को तैयार हुई,
अक्सर रिश्तेदार दादी को मिलने आते रहते हैं, मम्मी बिन न गुज़ारा चलता, पापा ये कहते हैं,
हमने भी तय किया, हम नानी घर नहीं जाएंगे, घर पर रह कर मम्मी का हाथ बंटाएंगे,
कुरुक्षेत्र तीर्थस्थल में हम रहते थे, आए दिन रिश्तेदार घुमने-फिरने आया करते थे,
दादी के मायके गांव से एक पति-पत्नी आए, बोले,"हम मुंह बोले भाई हैं,
कुरूक्षेत्र घूमने और बहना को मिलने की मन में आई है"
अंकल मैच, आंटी सिरियल की शौकीन थी,
एक ने मां का टी. वी. दूजे ने हमारे टी. वी. पर हक जताए थे,
न हम चैन से पढ़ते, न मां-पापा वक्त पर सो पाते थे,
फिर सुबह-सूबह वो चाय की डिमांड कर लिया करते थे,
चार ही दिन में मां उनसे परेशान हुई, अतिथि कब वापिस जाएं इस बात पर घर में तकरार हुई,
दोनों टी. वी. हमने तारे काट मां-पापा के मोबाइलों पर अब कब्ज़ा किया,
सारा दिन मोबाइल देखते और खाते रहते मां को खूब परेशान किया,
एक दिन पापा ने कहा, "हमें आफिस टूर पर जाना है,
पति-पत्नी दोनों का टिकट मिला, मौका नहीं गंवाना है,
दादी और बच्चों को आप पीछे से संभाल लेना,
दादी के लिए खाना अलग बनाना, बच्चों को उनके मनपसंद स्नेक्स बना देना,
सुनते ही बात ये मुंह उनके लटक गए,
बोले गांव से बुलावा आया, झट से उल्टे पांव अतिथि वापिस गए।