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Prem Bajaj

Romance

4  

Prem Bajaj

Romance

इश्क की लकड़ी

इश्क की लकड़ी

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तुम बनो समिधा हव‌न‌ की, उस हवन की लकड़ी बन जाऊं मैं,

इश्क में आग में ऐसे जले, होकर स्वाहा तुम में समाऊं मैं,

तू बनकर घृत बरसे मुझपर बन‌ इश्क की लकड़ी सुलग जाऊं मैं,

फैले खुशबू तेरी जहाॅं-जहाॅं, उस में अपनी खुशबू भी मिलाऊं मैं,


तुम जो कहो तो ये दिल तो क्या जान कुर्बान तुझ पे कर जाऊं मैं,

है इश्क ख़ुदा और तेरी चौखट मक्का मदीना है, 

सबके सर झुकते ख़ुदा के दर, तेरी चौखट पे सर झुकाऊं मैं,


एक बार जो तू सरेआम पकड़ ले हाथ मेरा तो,

मौत से भी छुड़ाने को हाथ उससे लड़ जाऊं मैं,

तेरी हथेली पे हो बस नाम मेरा ही,

ख़ुदा जो तेरी तक़दीर में करे हेर-फेर तो ख़ुदा से भी झगड़ जाऊं मैं,


इस कदर तुम समा जाओ मुझमें, जब भी

देखूं आईना खुद की जगह तुझको ही पाऊं मैं,


बस मैं देखूं तुझे और तू मुझे निहारा करें,

जब तू देखे चेहरा रकीबों का उस पल ही मर जाऊं मैं।


होकर स्वाहा मिले हम दोनों, बांधो ऐसे आलिंगन पाश में,

एक जन्म तो क्या जन्म-जन्म को तेरी होकर रह जाऊं मैं।





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