मुई चाय
मुई चाय
कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है
कभी इश्क के पेच लड़वा जाती है
तेरी मेरी इसकी उसकी दुनिया भर की
सब बातें चाय के साथ ही की जाती हैं
कभी मेल कराती है तो कभी कभी झगड़े
मिले तो तबीयत खुश ना मिले तो लफड़े
कभी प्रेमिका की तरह तुनक जाती है
और कभी इश्क की गहराइयों में डुबा जाती है
इससे ज्यादा मुहब्बत भी ठीक नहीं है यारों
जोश में ये एसिडिटी के दलदल में धंसा जाती है
इससे दूरी होने पर जिंदगी नीरस सी बन जाती है
ये पड़ोसन की तरह है जो दूर दूर से मन ललचाती है
उतावली भूल कर भी मत करना दोस्तों
गुस्से से करमजली मुंह जला जाती है
कभी कभी तो ये इतना इंतजार करवाती है
कि कप में पड़ी पड़ी बीवी सी "ठंडी" हो जाती है
प्रेम और चाय को कभी ठंडी मत होने देना साथियों
इनके ठंडे होने पर ये जिंदगी भी बोझ बन जाती है।
श्री हरि