दोहे : अनोखा शतरंज
दोहे : अनोखा शतरंज
चालें चलता हर कोई, देने को शह मात
जीवन में चलते रहते हैं घात और प्रतिघात।
बिछी हुई है चौसर सी , षड्यंत्रों की बिसात
अपने ही कर जाते हैं किसी दिन विश्वासघात।
सदियों से ही चल रहा सास बहू में यह खेल
कभी सास भारी पड़ी थी आज बहू रही पेल।
वंशवाद कायम रखने को कॉलेजियम की चाल
सुप्रीम कोर्ट शासन करे ले संविधान की ढाल।
राजनीति की चौसर पे नेता, चलते ढाई चाल
ईमानदारी का कंबल ओढ, गटक रहे हैं माल।