अर्पण
अर्पण
"दीदी देख...ये देख झुमकी...जरा देख ...अच्छी है न?" सबसे छोटी बहन ने बड़े उत्साह से अपनी तीनों बहनों के बीच सुंदर डिबिया में से सुनहरी चमचमाती झुमकियाँ निकालकर बताते हुए कहा।
अपने छोटे और इकलौते भाई के विवाह में चारों बहनें मायके में इकट्ठी हुई हैं। सब होने वाली भाभी के लिए क्या गिफ्ट लाई हैं यही एक दूसरे को बता रहीं हैं।
बड़ी दीदी का मन बहुत मायूस है।
एक तो उनकी दुकान पहले ही बहुत अच्छी नहीं चल रही थी फिर कोरोना ने ज़िदा तो छोड़ दिया पर कहीं का न छोड़ा। जो भी थोड़ा रहा सहा था वह फिर से दुकान शुरू करने में चला गया। कैसे बताती छोटे को कि अभी तो उसका आना ही बहुत बड़ी चुनौती था।
"अरे छोटी तेरी तो बचपन से ही पसंद बहुत अच्छी है... बहुत सुंदर झुमकियाँ है रे... जरा मेरा भी तो देखो... मैने ये नाजुक सा मंगलसूत्र बनवाया है...तेरे जीजाजी और मैंने मिलकर पसंद किया है।" मंझली दीदी ने भी बड़ी खुशी-खुशी अपनी गिफ्ट बताई।
"आजकल लंबी अंगूठियाँ बहुत चल रही हैं सो वही बनवा ली है... छुटके तू भी देख ले... तेरी दुल्हनिया को पसंद तो आ जाएगी न?" संझली बहन ने दूल्हा बने भाई को छेड़ते हुए कहा।
बड़ी दीदी अपने आप में सिमट गई। कुछ कहने के लिए मुँह खोलना ही चाह रही थी कि अचानक छोटा बीच में आ गया," बड़ी दीदी ने अपनी गिफ्ट मुझे सुबह ही दे दी यह देख लो...।" उसके हाथ की सुनहरी डिबिया में दो नाजुक सोने की चूड़ियाँ थी।
" अरे वाह दीदी... तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली...।"
कहते हुए तीनों बहने अगले कमरे में बज रही ढोलकी पर थिरकने चली गईं।
"छोटे... तू इतना बड़ा हो गया रे... तूने झूठ क्यों बोला?" दीदी का गला रूंध गया था।
"दीदी मैंने झूठ नहीं बोला... तुझे याद है मेरी इंजीनियरिंग की फीस जमा करने के लिए तूने अपनी दोनों चूड़ियाँ पापा को दे दी थी...सो ये तेरी ही तो हुई न ...बस डिज़ाइन मेरी पसंद की है...।"
"छोटे...।" दीदी का स्वर भीगा था।
"और कुछ नही दीदी... बस तेरा तुझ को अर्पण।"