अर्जुन को कृष्ण का उपदेश
अर्जुन को कृष्ण का उपदेश
ऐ पार्थ मोह को त्याग अरे,
गांडीव उठा कर युद्ध करो।
जो कहता हूँ, धर -ध्यान सुनो,
मति अर्जुन अपनी शुद्ध करो।
है सृष्टि समाहित मुझमें ही,
हर तत्व जन्म मुझसे पाता।
फिर समय चक्र को पूरा कर,
मुझमें ही लौट समा जाता।
लो देखो मेरा दिव्य रूप,
निज मोह त्याग आगे आओ।
कर समाधान सब शंकाएँ,
बस युद्ध भूमि पर छा जाओ।
धनधोर हुआ गर्जन नभ में,
पाताल तला-तल काँप गया।
तैलोक्य सृजित विधिना सारी,
विस्मृति अर्जुन मन भाँप गया।
देखो यह अगणित सूर्य, चंद्र,
सातो सागर, गिरि, नभमंडल।
मुझमें ही सभी समाहित हैं,
सब जीव, गगन, तारामंडल।
हो गये पार्थ लख रूप अतल,
हो गया मोह सब क्षार-क्षार।
भुजदण्डों ने आवेग भरा,
आँखों ने उगली रक्तधार।
हुँकार उठा फिर पल भर में,
बन महाकाल अर्जुन रण में।
हर ओर पार्थ ही दिखता था,
कुरु वंशोंं के समरांगण में।
