अपरिवर्तित
अपरिवर्तित
कोई कुछ भी कहे...
आपकी सहज-सरल स्वभाव पे
चाहे कितने भी प्रश्नचिह्न लगे...
आप अपरिवर्तित रहें, ओ सुकांत जी !
क्या हुआ अगर लोग
आपसे बहुत आगे निकल चुके हैं !
क्या हुआ अगर दौलत-ओ-शोहरत
उनके सर चढ़कर बोलना शुरू कर दिया...
आप बस अपरिवर्तित रहें, ओ सुकांत जी!
आप अपनी युवावस्था में
कई अच्छे-बुरे अनुभवों से
बेशक़ रुबरु हुए और इस वजह से
आप अब भी निरलस भाव से परिपूर्ण
अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहें हैं, ओ सुकांत जी...।
ओ सुकांत जी ! आप किसी
प्रतियोगिता की होड़ में
दौड़ नहीं लगा रहे हैं...
बल्कि आप तो अपनी
ईमानदारी को परमेश्वर मानकर
अपना कर्मयोग कर रहे हैं...
आज इस आधुनिकता के अंधेपन में
शायद आपके साथी
आपको पीछे छोड़ कर
बहुत दूर निकल चुके होंगे,
मगर एक दिन वे लोग
थकहार कर लौट आएंगे...
और आपके आसपास पुनः
सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा ।
आपको शत् शत् नमन, ओ सुकांत जी !
