अपना मन
अपना मन
सपना वो होता है,
जो ख्वाहिश से नहीं बनता
उम्मीद से रहेना है,
जब मांजिल मिल जाता।
मांजिल तो है दूर ,
पाना भी आसान नहीं
दिखा हजार जग में,
पाया अब में कुछ नहीं।
दुनिया है कर्म भूमि,
अपना काम करते रहना
लोग तो कहेंगे बहुत,
लोगों का काम है कहना।
हाथ खोला तो देखा,
ऊंगली थी हाथ में पांच
समान न था ऊंगली,
बताया दुनिया को सच।
कुछ भी है अहंकारी,
कुछ भी हे सच्चे प्यारे
गिरकर उठना सीखा,
जला कर दिया अंधेरे।
मन तो पाँच होता है,
प्रकृति होती है पचास
मन भागता है,
रहता नहीं अपना वश।
आयत करना मन को ,
बनना है तो विवेकानन्द
मिला पाऊँ खा लेना,
नहीं मिली तो भी आनन्द।।
