STORYMIRROR

Maheswar sahoo

Drama

2  

Maheswar sahoo

Drama

चाहत

चाहत

1 min
247

अपनी चाहत अपनी सोच

        बदलती है जन जन में

चाहत करना पूरी न होने से 

       अफसोस होता है मन में।


रात रात भर सपने न देखो 

      जब अनहोनी है तो करने में

सपने देखते हैं ओ लोग सब 

        जो करके भी दिखाने में।


जो हार हार के जीया है जीवन 

        ओ ज़ितेगा कभी एक बार

हारकर जीते जो उन्हें मालूम 

       चाहत को सच्चाई बनाकर ।


उड़ती है पतंग असमान में 

         हवा की झुकी चाहत में

दिल बहलाती है हवा जब 

     पतंग भी चलती ओ दिल में।


चाहत भी बदल जाती है 

       जैसी पतंग बदलती दिल

अपनी चाहत भी बदल जाती 

     जब हम बन जाते दीवानगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama