अपना देश और विदेश
अपना देश और विदेश
अपना प्यारा देश छोड़कर जो अभागे, बस जाते हैं विदेश l
तन बसता है उनका परदेस में, मन बसे है अपने ही देश l
अपने देश की मिट्टी, संस्कृति, सभ्यता को याद करके बैठ रोते है परदेश l
अपने देश आने पर, अपने ही लोग कहते हैं उन्हें बाबू विदेशी l
अपने देश की छटा निराली फिर क्यों जाना है तुम्हें विदेश l
प्राचीनतम है सभ्यता, संस्कृति यहां की जिसकी गौरव गाथा गाते विदेश l
विश्व गुरु कहलाता था जग में, सोने की चिड़िया अपना देश l
अपने देश हित में काम करो तुम, परचम लहरा दो देश-विदेश l
अपने सारे ज्ञान व समर्थ को, झोंकने मत जाया करो विदेश l
अपना सामर्थ्य और ऊर्जा यहां लगाओ करो समृद्ध तुम अपना देश l
हमारे देश की सभ्यता, एकता, समृद्धि, सामर्थ्य से नतमस्तक होंगे विदेश l
आज करें प्रतिज्ञा, अपने भुज बल से पुनः स्वर्णिम कर देंगे अपना देश l
भारत के इस चमन में बसते हैं रंग - बिरंगे फूल देश-विदेश से l
जग में सबसे प्यारा, न्यारा, वसुधैव कुटुंबकम की भावना रखता अपना देश l
ऐसे प्यारे देश को अपने छोड़कर, कभी नहीं जाना तुम विदेश l
हमारी आन है, हमारी शान हैं, हमारी पहचान है, हमारा देश l
