अफ़सर मजदूर
अफ़सर मजदूर
वो अपना हंटर मारता रहा मैं अपनी पीठ पर खाता रहा
वो पद का रौब दिखाता रहा मैं झूक कर काम करता रहा
वो अपनी प्यास बुझाता रहा मैं अपना खून उसे पिलाता रहा
वो तलवार की धार तेज करता रहा मैं अपनी गर्दन उसे पेश करता रहा
वो जोर से अट्टाहास करता रहा मैं नया जन्म लेकर पैदा होता रहा
वो और ज्यादा ताकतवर होता रहा मैं फिर से कमजोर पैदा होता रहा
वो अपनी जीत पर खुश होता रहा मैं अपनी हार पर मुस्कुराता रहा
वो पैसे वाला अमीर कहलाता रहा मैं जाहिल ग़रीब कहलाता रहा
वो अपने बच्चे पालता रहा मैं अपने बच्चे पालता रहा
वो अपना फर्ज़ निभाता रहा मैं अपना फर्ज़ निभाता रहा
वो पढ़ा लिखा अफ़सर था मैं अनपढ गँवार मज़दूर था
वो अपना काम करता रहा मैं अपना काम करता रहा