बस इतनी हैं मेरी आरजू
बस इतनी हैं मेरी आरजू
तर्ज :- तेरी मिट्टी में मिल जावा गुल बनके में खिलजावा
मुवी :- केसरी
ऐ यार मेरे ये मेरी जमीं
मैं इतना तो कर सकता हूँ
मैं मेरी भारत माँ के लिए
ये शीश कटा तो सकता हूँ
मैं इसकी गोद में सो जाऊँ
मैं इस पर तिरंगा फहराऊँ
बस इतनी हैं मेरी आरजू
वो दुश्मन है जो पार खड़ा
वो मेरा भी हैं यार बड़ा
उसका कोई भी दोष नहीं
ये दोष तो है लकीरो का
मैं उसके गले से लग जाऊँ
मैं उसके दिल में बस जाऊँ
बस इतनी हैं मेरी आरजू
ये देश धर्म ये जात पात
शतरंज की है सब बिसात
ये जंग युद्ध ये वैर भाव
परिणीति है इनके ये घाव
मैं इनकी मरहम बन जाऊँ
मैं इन पर परचम लहराऊँ
बस इतनी हैं मेरी आरजू
हम हिन्दुस्तानी शांति के प्रतीक है
हम दुश्मन के प्रति भी घृणा नहीं पालते मन में
तो उसकी तारीफ में भी ये शब्द लिखे हैं...
मेरा दुश्मन भी है वीर बड़ा
वो भी है किसी का वीर बड़ा
उसकी भी है एक हीर खड़ी
उसकी भी हैं ये पीर बड़ी
मैं उसकी पीर पे मिट जाऊँ
मैं उसको हीर से मिल वाऊँ
बस इतनी हैं मेरी आरजू
वो दुश्मन भी एक बेटा है
सरहद पर अपनी बैठा है
उसे फिकर है अपनी मिट्टी की
वो कर्ज चुका के लेटा है
मैं उसका सहचर कहलाऊँ
मैं उसका दिलबर बन जाऊँ
बस इतनी हैं मेरी आरजू
मेरे दुश्मन की एक मात भी है
मेरे दुश्मन का एक तात भी है
उसे लाड चाव से पाला है
वो कितना नसीबों वाला हैं
मैं उसके तात से मिल आऊँ
मैं उसकी मात को घर लाऊँ
बस इतनी हैं मेरी आरजू
