अंतिम पाती
अंतिम पाती
प्रथम प्रणाम उस मात-पिता को जिसने मुझको जन्म दिया
शीर्ष प्रणाम उन गुरुजनों को ज्ञान का जिसने कर्ज़ दिया
फिर प्रणाम उन पूर्वजों को मैं जिनका वंशज बनकर जन्मा
शेष प्रणाम उन मित्र जनों को जिनसे है मुझको प्रेम घना
मैं न भुला उन बहनों को राखी जिसने बांधी थी
जिसकी सदा रक्षा करने की मैंने कसमें खाई थी
छोटे-बड़े सब भाई मेरे हृदय में सदा ही बसते है
मुझसे करते प्रेम बहुत वो पलकों पर मुझको रखते है
पाती मेरी सब तक पहुंचे, सबको स्मरण ये हो जाए
सबसे मेरा है नाता गहरा, क्षुब्ध कोई ना होने पाये
माता से विनती है मेरी मोह ना टूटे मुझसे तेरी
चाहे जो कुछ भी हो जाये, नैन ना तेरे रोने पाये
तूने ही राह दिखाई थी मेरे दिल में ज्योत जलायी थी
राष्ट्र प्रेम ही बड़ा धर्म है यह बात तूने ही सिखायी थी
तेरी ही प्रेरणा से मैं एक सिपाही बन बैठा
सबसे पहले मातृभूमि है यही प्रतिज्ञा कर बैठा
तेरे प्रति जो फर्ज़ है मेरा दूध का जो भी कर्ज़ है मेरा
इस बार चुका ना पाऊँगा मैं वापस आ ना पाऊँगा
हे तात तुम्हें सराहूं क्या मन की बात बताऊँ क्या
सारी उम्र ना बताया जो आज वही कह जाऊँ क्या
धैर्य तुम्ही से पाया है संयम भी अपनाया है
तेरी ही छाया में पलकर ये चरित्र मेरा बन पाया है
देश का सर ना झुकने पाये ये तुमने पाठ पढ़ाया है
उन सिखों ने ही आज मुझे इस काबिल बनाया है
ज्ञान गुरु से पाकर मैंने सही गलत को पहचाना
कर्म ही मेरा सच्चा धर्म है सबसे पहले उसको जाना
आप सभी का कृतज्ञ रहूँगा आप सबका मैं आभारी हूँ
लेकिन इस जनम के खातिर मैं बस सबका ऋणधारी हूँ
पूर्वजों से आग्रह है मेरा स्थान मेरा अब बनाए वो
यमलोक में मेरा स्वागत करने स्वयं चलकर आए वो
मैंने आपके वंश प्रथा को आगे ही बढ़ाया है
जहां ध्वज को खड़ा किया था उसे ऊंचा और उठाया है
अच्छा अब मैं चलता हूँ यमलोक के लिए निकालना है
पथ ताकते मित्र सिपाही उनके संग भी टहलना है
ना करना तुम सब क्रंदन खत्म हुआ जो मेरा ये तन
देश प्रेम में कर दूँ अर्पित मैं आने वाला पूरा जीवन।
